Ramlala’s two sculptors had moved ahead, then Yogiraj carved the stone for 16 hours every day; Read the whole story

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रामलला की मूर्ति पूरी बन जाने के बाद भी किस बात का डर था? जब तस्वीर वायरल हो गई, तब क्या हुआ और प्राण प्रतिष्ठा के बाद मूर्ति अलग क्यों दिखने लगी? एक शिला को भव्य-दिव्य मूर्ति में परिवर्तित करने की इसी यात्रा के बारे में बता रहे हैं मूर्तिकार अरुण योगीराज…

जैसे अयोध्या में भव्य प्राण-प्रतिष्ठा के साथ विराजे रामलला की प्रतिमा सदा के लिए इतिहास में दर्ज हो गई है, वैसे ही अरुण योगीराज का नाम उसके मूर्तिकार के रूप में हमेशा के लिए लिखा जा चुका है। इन्हीं अरुण योगीराज से मिलना, उनसे बात करना, मूर्ति निर्माण की उनकी पूरी यात्रा से गुजरना एक बहुत ही दिलचस्प अनुभव रहा। इस बातचीत में उन्होंने कई ऐसी बातें बताईं हैं|

शिल्प और उसका शिल्पकार। मूर्ति और उसका मूर्तिकार। दोनों के अंतरसंबंधों को समझना हो तो आप अयोध्या में स्थापित रामलला की उस दिव्य प्रतिमा को देखिए और फिर उस मूरत को गढ़ने वाले अरुण योगीराज से मिलिए। आपको शिला के अहिल्या होने की प्रक्रिया समझ में आ जाएगी।

जैसे अयोध्या में भव्य प्राण-प्रतिष्ठा के साथ विराजे रामलला की प्रतिमा सदा के लिए इतिहास में दर्ज हो गई है, वैसे ही अरुण योगीराज का नाम उसके मूर्तिकार के रूप में हमेशा के लिए लिखा जा चुका है। इन्हीं अरुण योगीराज से मिलना, उनसे बात करना, मूर्ति निर्माण की उनकी पूरी यात्रा से गुजरना एक बहुत ही दिलचस्प अनुभव रहा। इस बातचीत में उन्होंने कई ऐसी बातें बताईं हैं|

पहले मैसूर से बंगलूरू तक चार घंटे का सड़क का सफर। फिर बंगलूरू से लखनऊ की लंबी फ्लाइट जब अरुण योगीराज अपने एक करीबी मित्र और सहयोगी के साथ होटल की लॉबी में पहुंचे, छरहरे, लेकिन गठे हुए बदन के गोरे वर्ण और भूरी चमकती आंखों वाले योगीराज ने मुस्कुराते हुए होटल में प्रवेश किया। गहरे नीले रंग का कुर्ता, सफेद पेन्टनुमा पायजामा और सादी सी कत्थई चप्पल।

हमने ये तो तय कर लिया था कि आते ही उनसे साक्षात्कार के लिए निवेदन करना है, पर ये संशय भी था कि कहीं लंबे सफर की थकान का हवाला देते हुए वे मना ना कर दें। पर योगीराज की सहजता ने दिल जीत लिया। एक तो वो पारंपरिक दक्षिण भारतीय लहजे में इतनी प्यारी अंग्रेजी मिश्रित हिन्दी बोलते हैं कि सीधे दिल को छू जाए। जैसे ही पूछा- आप थके हुए तो नहीं हैं, क्या हम आपका इंटरव्यू ले सकते हैं  वो सहर्ष तैयार हो गए। इतनी आसानी से वो कुर्सी पर मेरे साथ बात करने बैठ गए कि उनके सहयोगी को याद दिलाना पड़ा कि ये इंटरव्यू कैमरे पर हो रहा है और आप लंबे सफर से आए हैं, मुंह तो धो लीजिए!! तब जाकर वो मुंह धोकर साक्षात्कार के लिए आए।

मूर्ति को गढ़ने का आपका अनुभव कैसा रहा?
अरुण योगीराज: भारतवासी पांच सौ साल से इस पल का इंतजार कर रहे थे। हमारा परिवार पांच पीढ़ी यानी कोई तीन सौ वर्षों से यह काम कर रहा था। उन पांच पीढ़ियों में से भगवान ने शायद मुझे उस मूर्तिकार के रूप में चुना, जो उनकी मूर्ति बनाए। मूर्तिकार के रूप में देश के सामने मेरा परिचय हो सका, यह मेरे पूर्वजों का पुण्य है। पूर्वजों की सिखाई हुई कलाओं का मैं अध्ययन करता था। मेरे पूर्वज बहुत कुछ छोड़कर गए हैं। मैं सोचता था कि कभी जिंदगी में बड़ा काम मिलेगा। भगवान की कृपा है कि इतना बड़ा काम मिला।

जब पहली बार राम मंदिर ट्रस्ट की तरफ से यह सूचना आई कि आपको मूर्ति बनानी है, तब कैसा महसूस हुआ?
अरुण योगीराज: पिछले साल अप्रैल में मुझे यह जानकारी मिल गई थी कि तीन मूर्तिकार चुने गए हैं, जिनमें मैं सबसे युवा हूं। बहुत खुशी हुई, लेकिन यह सिर्फ 10 मिनट के लिए ही थी। पूरा देश पांच सौ साल से इंतजार में है और हमें कहा गया कि पांच साल की उम्र के लला चाहिए। बहुत रिसर्च किया, लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा। ऐसे में पहली बार रामलला की मूर्ति देश के सामने आई तो लगा कि देश उसे कैसे स्वीकार करेगा। सात महीने मैं सोचते-सोचते ठीक से नहीं सो सका। इतना बड़ा मौका मैं नहीं खोना चाहता था। हर दिन चिंतन चलता था।

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